Uniform civil code Article 2019 | समान नागरिक संहिता | in Hindi | India

Uniform Civil Code Bill 2019 | indian Constitution bill | bjp

Uniform civil code |  समान नागरिक संहिता | in Hindi | 2019 | India


Saman Nagrik Sanhita 2019

Uniform Civil Code 2019

Uniform civil code is the ongoing point of debate Indian mandate to replace personal laws based on the scriptures and customs of each major religious community in India with a common set of rules governing every citizen. Article 44 of the Directive Principles  expects the state to apply these while formulating policies for the country.Apart from being an important issue regarding secularism in India & fundamental right to practice religion contained in Article 25, it became one of the most controversial topics in contemporary politics during the Shah Bano case in 1985. Although Article 44 of the Indian Constitution guarantees UCC to all citizens,the debate arose when the question of making certain laws applicable to all citizens without abridging the fundamental right of right to practice religious functions. The debate then focused on the Muslim Personal Law, which is partially based on the Sharia law, permitting unilateral divorce, polygamy and putting it among the legally applying the Sharia law. The Bano case made it a politicised public affair because of the pro-islamic bias of the judge and the then incumbent congress. The law passed was repealed under tremendous pressure and protests from the muslims in India and the AIMPLB.

Personal laws are distinguished from public law and cover marriage, divorce, inheritance, adoption and maintenance. Goa has a common family law, thus being the only Indian state to have a uniform civil code. The Special Marriage Act, 1954 permits any citizen to have a civil marriage outside the realm of any specific religious personal law.

Personal laws were first framed during the British Raj, mainly for Hindu and Muslim citizens. The British feared opposition from community leaders and refrained from further interfering within this domestic sphere.

The demand for a uniform civil code was first put forward by women activists in the beginning of the twentieth century, with the objective of women's rights, equality and secularism. Till Independence in 1947, a few law reforms were passed to improve the condition of women, especially Hindu widows. In 1956, the Indian Parliament passed Hindu Code Bill amidst significant opposition. Though a demand for a uniform civil code was made by Prime Minister Jawaharlal Nehru, his supporters and women activists, they had to finally accept the compromise of it being added to the Directive Principles because of opposition from the Muslim members in the Constituent Assembly of India

समान नागरिक संहिता 2019


समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी धर्म  के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है| दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' का मूल भावना है। समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी धर्म या क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं।

समान नागरिकता कानून के अंतर्गत

व्यक्तिगत स्तर
संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन का अधिकार
विवाह, तलाक और गोद लेना
समान नागरिकता कानून भारत के संबंध में है, जहाँ भारत  का संविधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सभी नागरिकों को समान नागरिकता कानून सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। हालाँकि इस तरह का कानून अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है।गोवा एक मात्र ऐसा राज्य है जहां यह लागू है।

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मैं व्यक्तिगत रूप से समझ नहीं पा रहा हूं कि क्यों धर्म को इस विशाल, व्यापक क्षेत्राधिकार के रूप में दी जानी चाहिए ताकि पूरे जीवन को कवर किया जा सके और उस क्षेत्र पर अतिक्रमण से विधायिका को रोक सके। सब के बाद, हम क्या कर रहे हैं के लिए इस स्वतंत्रता? हमारे सामाजिक व्यवस्था में सुधार करने के लिए हमें यह स्वतंत्रता हो रही है, जो असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरा है, जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष करते हैं। भारत में सरकार का अगला कदम हो सकता है - बी आर अम्बेडकर
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इतिहास
१९९३ में महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव को दूर करने के लिए बने कानून में औपनिवेशिक काल के कानूनों में संशोधन किया गया। इस कानून के कारण धर्मनिरपेक्ष और मुसलमानों के बीच खाई और गहरी हो गई। वहीं, कुछ मुसलमानों ने बदलाव का विरोध किया और दावा किया कि इससे देश में मुस्लिम संस्कृति ध्वस्त हो जाएगी।

यह विवाद ब्रिटिशकाल से ही चला आ रहा है। अंग्रेज मुस्लिम समुदाय के निजी कानूनों में बदलाव कर उससे दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते थे। हालाँकि विभिन्न महिला आंदोलनों के कारण मुसलमानों के निजी कानूनों में थोड़ा बदलाव हुआ।

प्रक्रिया की शुरुआत १७७२ के हैस्टिंग्स योजना से हुई और अंत शरिअत कानून के लागू होने से हुआ. हालाँकि समान नागरिकता कानून उस वक्त कमजोर पड़ने लगा, जब तथाकथित सेक्यूलरों ने मुस्लिम तलाक और विवाह कानून को लागू कर दिया। १९२९ में, जमियत-अल-उलेमा ने बाल विवाह रोकने के खिलाफ मुसलमानों को अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने की अपील की। इस बड़े अवज्ञा आंदोलन का अंत उस समझौते के बाद हुआ जिसके तहत मुस्लिम जजों को मुस्लिम शादियों को तोड़ने की अनुमति दी गई।

भारतीय संविधान और समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग ४ के अनुच्छेद ४४ में है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है।

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